बाढ़ के समय प्रार्थना's image
017

बाढ़ के समय प्रार्थना

ShareBookmarks

ओ मेरी माँ!

मेरे पूर्वजों की माँ!

अपनी उद्दंड बेटियों को डाँटो!

तुम्हारी ये ज़िद्दी बेटियाँ ये धाराएँ उमगकर दौड़ती चली आ रही हैं

गाँव के सीमांत पर!

खेतों को, फ़सलों को पकड़-पकड़ लोटती हैं

देखो! ये ले गईं आम का बग़ीचा भी

याद है तुम्हें! चार साल पहले तुम्हारे खुले केशों की जटाओं जैसी ये चंचल बालिकाएँ

खिलखिलाती हुईं ब्रह्म-वृक्षों के जोड़े में से एक को ले गईं

समझाओ इन्हें!

ऐसे दिन-दहाड़े अपने घर से इतनी दूर-दूर न आया करें

इनके आगमन से गाँव में अकाल मृत्यु की घंटियाँ बजती हैं

पशु-पक्षी-मनुष्य-वृक्ष अवाक् इन्हें ताकते हैं

इन बिगड़ैल किशोरियों का हठ क्या बाँध को ठेलकर ही मानेगा

मेडुसा के केशों के अनगिनत सर्पमुखों-सी ये तुम्हारी लड़कियाँ जहाँ से गुज़रती हैं, खेल-खलिहानों में खिलखिल करती चलती हैं

दिशा-दिगंतर को ध्वस्त करती चलती हैं

ओ मेरी मातृमुखी माँ!

अब समेटो इन्हें, वापिस बुलाकर अपनी गोद में सुलाओ...

Read More! Learn More!

Sootradhar