
देख उस को इक आह हम ने कर ली
हसरत से निगाह हम ने कर ली
क्या जाने कोई कि घर में बैठे
उस शोख़ से राह हम ने कर ली
बंदे पे न कर करम ज़ियादा
बस बस तिरी चाह हम ने कर ली
जब उस ने चलाई तेग़ हम पर
हाथों की पनाह हम ने कर ली
नख़वत से जो कोई पेश आया
कज अपनी कुलाह हम ने कर ली
ज़ुल्फ़-ओ-रुख़-ए-महवशाँ की दौलत
सैर-ए-शब-ए-माह हम ने कर ली
क्या देर है फिर ये अब्र-ए-रहमत
तख़्ती तो सियाह हम ने कर ली
दी ज़ब्त में जब कि 'मुसहफ़ी' जाँ
शर्म उस की गवाह हम ने कर ली
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