
पट चाहै तन मेट चाहत छदन बन,
चाहत सुघन जेती संपदा सराहबी।
तेरोई कहाय कै रहीम कहै दीनबंधु,
आपनी बिपति द्वार जाय काके काहबी॥
पेट-भरि खायो चाहै उद्यम बनायो चाहै,
कुटुम जिवायो चाहै, काढ़ि गुन लाहबी।
जीविका हमारी जो पै औरन के कर डारो,
ब्रज में बिहारी तौ तिहारी कहा साहबी॥
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