हक के लिए लड़ रहे थे जनाब
तुम्हारी तरह गद्दी के लिए नहीं,
मिला क्या?
सिर्फ मौत!
छाती को छलनी कर दिया
टायर चढ़ाकर नामर्दों ने,
लहूलुहान कर दिया
फसलों को
नस्लों को!
दिन रात एक करके
भरता है जो देश का पेट,
कुचला जा रहा है उसे
नामर्दों द्वारा
बेबस है वो
लाचार है वो
क्योंकी किसान है वो!
मुआवजे से तुम
उसकी जान तोल रहे हो
तुम्हारी तरह गद्दी के लिए नहीं,
मिला क्या?
सिर्फ मौत!
छाती को छलनी कर दिया
टायर चढ़ाकर नामर्दों ने,
लहूलुहान कर दिया
फसलों को
नस्लों को!
दिन रात एक करके
भरता है जो देश का पेट,
कुचला जा रहा है उसे
नामर्दों द्वारा
बेबस है वो
लाचार है वो
क्योंकी किसान है वो!
मुआवजे से तुम
उसकी जान तोल रहे हो
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