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वीरान बस्तियाँ


मज़हब उलझते आपस में

है जात पात की रस्साकसी


बेधकर प्रेम के घरौंदों को

है मचाई नफ़रतों ने त्रासदी


आँसुओं के उबलते सैलाब

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