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सिर्फ़ तुम…
सोचा उसपर एक कविता लिखूँ
पर शब्दों ने उसकी तस्वीर बना डाली
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तेरे स्पर्श के बिना अधूरा सा हूँ
मेरा कलम सा नाता है तुमसे
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लोग कहते है कि उन्हें बोलने से परहेज़ है
पर हमें तो उनकी ख़ामोशी भी सुनाई देती है
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मैंने दर्पण नहीं टाँगे चार दीवारी में कहीं
बस आँखों में तेरी खुद को देखने की चाह है
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ख़रीद ली एक सौ आठ मणियों की माला मैंने
क्यूँकि हर मणि में तेरा नाम खुदा था
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