
प्रिये !
मैं मूक सहमा सा प्राणी
तुम तानों की बौछार प्रिये,
तुम सर्वदा बनी दरोग़ा
मैं अपराधी हर बार प्रिये !
तुम सूरज की प्रखर किरण सी
मैं चंद्र सा मध्यम प्रिये,
तुम निकलती जब भोर उजाले
हो जाता मैं ओझल प्रिये !
मैं ठहरा सागर का तीर
तुम लहरों की हलचल प्रिये,
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