पिता हूँ मैं
सबसे छुपा ले माथे की शिकन वो भाव हूँ
करे हर उत्तेजना को सहज, वो शीतल जल प्रवाह हूँ |
रोके कुल की तरफ़ आती हर आँधी को वो चट्टान हूँ
सीमित सामर्थ्य फिर भी हर समस्या का समाधान हूँ |
आजीवन तुम्हारे हर सपनों की किस्त चुकाता हूँ
खुद को मिटाकर भी हर फ़र्ज़ निभाता हूँ |
हर बर्ताव पर अक्सर तुम्हें टोकता हूँ
पर इसमें भी कहीं तुम्हारी भलाई ही सोचता हूँ |
हर असमंजस के पलों का आभास हूँ
तुम्हारे डगमगाते कदमों का विश्वास हूँ |
अकारण
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