
जिंदगी का नहीं कोई ठिकाना।
प्यार की धुन वहीं फिर गुनगुना ना।
क्या नशा था हमें, कैसे थे हम भी,
याद अब आ रहा गुजरा जमाना।
फ़िक्र कुछ भी नहीं, थे मस्तमौला,,
बारिशों में उछलकर, उफ़ नहाना।
रेडियो में चले जो गीत कोई,
संग उस गीत के खुद सुर मिलाना।
खेलने के सिवा कुछ भी न भाता,
मां के डर से सिखा, खाना बनाना।
याद है वो जलेबी छील खाना,
आम के पेड़ पर घंटों बिताना।
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