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पंच पाप

पांडवो के शौर्य एवं तेज का निज क्षय हुआ

कुटिल कपटी राजनीति जीतना दुर्जय हुआ


बहु सभ्यजन आलोक में विषद यह घटना घटी

धर्मवीर सानिध्य में जो पांच पापो में बंटी


न अपराध पांडवो का वर्णनों के योग्य है

न नीच कुरुओं की दशा किसी भांति शोभ्य है


पर पांच पापो के परे कहना अधिक असभ्य होगा

न इतिहास भूलेगा इसे, न भविष्य ही सुगम्य होगा


बहुभांती राज्य को मिले कृपा किसी भीष्म की

चाहे मिले आशीषता अनूपम तपों के भस्म की


वह हर प्रतिज्ञा अपराधिनी, जो लोकनीति के परे

निज धर्म रक्षण नहीं जहां गरिमा नारी की मरे


यही प्रथम पाप विनाश का आधार निर्मित कर रहा

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