जिन स्त्रियों को, अपने हिस्से का प्रेम जीने को नहीं मिला,
वो, प्रेम के बिना ही, प्रेम में रहीं,
वो प्रेम बनी, प्रेमी भी वही बनी,
वो बिन रांझा के, हीर बनी,
वो फूल बनी,
फूल देने वाला हाथ भी वही बनी,
वो खुद सँवरी,
और श्रृंगार भी वही बनी,
अपने लिए तारें उन्होंने खुद तोड़े,
और वे खुद ही अपना चाँद बनी,
अपने ललाट को उन्होंने खुद चूमा,
और फिर फूट फूट कर रो पड़ी,
और फिर वो आँसू आग हो गये,
वो आग, जिसने, उनके हदय में प्रेम की लौ जलाए रखी,
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