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सपनों के फूल

*~सपनों के फूल*~ 



ननिहाल की पगडंडी से
गुजरते हुए
मैंने अक्सर देखा है मां को
दशकों के पन्नों को 
पीछे उलटते पलटते हुए 
यादों की गठरी खोल
बच्ची बन गमकते हुए
बीच आंगन में
गौरैया सा चहकते हुए
बात बेबात 
झरते फूलों सा हंसते हुए
उसकी आंखों में
उग आती है अलग चमक
जब भी देखा है मां को 
अपने बचे सपने बीनते हुए

पीहर से ससुराल के रास्ते में
जो कुछ भी हुआ
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