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मां होती है ईश्वर की पर्याय

मां होती है ईश्वर की पर्याय 

डॉ गीता शर्मा 

भोर की उजास में
दिन के भरते काज में
सांझ के सिंदूरी वितान में
रात की रजत गात में
नींद में सुंदर सपनों में
कथाओं की सबसे प्यारी परी सी
हर कहीं दिख जाती है मां


होली के चटख रंगों में
दीवाली के श्री उजास में
त्यौहार के उत्सवी भाव में
पूजन की सजी थाली में
कितने निर्जला उपवास में
तुलसी विरवे के दीप सी
हर कहीं दिख जाती है मां

शरद के पुलक चांद में
हेमंत के सुलगते अलाव में
बसंत के पीत उल्लास में
शीत की गरम रजाई में
गर्मी की ठंडी सुराही में
पावस के मल्हार राग सी
हर कहीं दिख जाती है मां

खेतों की हंसती फसलों में
भरे खलिहानों की मस्ती में
सांझ परे घर आती गौधूलि में
दूध दही और माखन मिश्री में
फलों की रसीली मिठास में
केसर वाली मीठी खीर सी
हर कहीं मिल जाती है मां


गरमागरम रोटी में 
छौंक वाली दाल में
गुजिया और मिठाई में
पापड़ चटनी अचार में
तुलसी अदरक वाली चाय में
रसोई से आती सौंधी सुगंध सी
हर कहीं मिल जाती है मां


प्रार्थनाओं की आर्त पुकार में
मंदिरों की लंबी कतार में
धागे बांधती  मान मन्नत में
नजर उतारती राई नोन में
दर्द से आहत निकली कराह में
आरती के मधुरम मधुरम नाद सी
हर कहीं मिल जाती है मां


अपने दुःख विसारती
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