मैं किसी जयप्रकाश से न मिला, किसी विनोबा के आश्रम ...
साफ़ - सुथरी सभ्यता की गन्दगी अध- मैले लोगों की ज़...
दल व दल बढ रहे बादल इधर से बढ रहे बादल, उधर से बढ ...
ओ,गीतेश्वर ! भूख ही भूख है, क्षुधा ही क्षुधा है हृ...
दोपहरी है , खेतों में हल हांक रहा है । कर्मठ जीवन...
दिवस भर के कड़े श्रम से चूर , सांझ को घर लौटता मजद...
अन्धकार है अन्धकार है अन्धकार ही अन्धकार है १ अन्...
अयि, गीते ! है एक ओर निर्जीव- निरीह मनोबल , दूसरी ...
मैं अध - गिरे सुखों के घर में, लेटा था अपने बिस्तर...
नूतन परिवर्तन से सब थरथरायेगा । भूडोल आयेगा , ...
क्या आपकी शिराओं में रक्त के बहाने माँ का दूध नहीं...
प्रिय बन्धु ! क्या तुमने कभी प्रेम की अनन्त दीप्ति...
संग्राम सिंह नर - सिंह - दल में ऐसा नृसिंह था जिसक...
गद्दी पर बैठा है तू जो मरे हुओं के फूल चिताओं से च...
मित्र ने मुझसे कहा, ---- तपस्या करना बेकार है अच्छ...
प्रभो ! क्या किया ? एक हंस को हम कौओं में जन्म दे ...
चौकड़ियाँ भारती आती है ,चंचल मृगी सरीखी लड़की , छु...
तब तक ही आकाश साफ़ था जब तक तेरे स्थिर थे आंसू , फ...
मन में पावन पग री ! द्युतिमय सब जग-मग री ! कविते ...
हाथ लगी तनिक छार मैं जीवन गया हार। मेरा हर स्व...
असंख्य शत्रु-सैन्य-कंठ काट-काट के बढो उदात्त लोकतन...
कौन कहता है कि गणतन्त्र - दिवस अब भी दिवस है ? जब...
अन्धकार है अन्धकार है अन्धकार व्योमाकार है . झोंप...
अन्धकार है अन्धकार है बाहर - भीतर अन्धकार है , कब ...