![व्यर्थ गर्व's image](https://kavishala-ejf3d2fngme3ftfu.z03.azurefd.net/kavishalalabs/sootradhar_post/Viyogi_hari.jpg)
अहे गरब कत करत तूँ खरब पाय अधिकार।
रहे न जग दसकंध-से दिग्विजयी जुगचार॥
कनक-पुरी जब लंक-सी झुरी अछत दसकंध।
तुव झोपरियाँ काँस की कौन पूँछिहै अंध॥
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अहे गरब कत करत तूँ खरब पाय अधिकार।
रहे न जग दसकंध-से दिग्विजयी जुगचार॥
कनक-पुरी जब लंक-सी झुरी अछत दसकंध।
तुव झोपरियाँ काँस की कौन पूँछिहै अंध॥