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तवील ख़ामुशी - नज़्म

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बातों का मर्तबान अचानक छूट गया है हाथों से

बातों के नाज़ुक जिस्म अब लफ़्ज़ों की किरचों से

ज़ख़्मी है और लहूलुहान बे-बस से हैं

ख़याल और मा'नी भी उछल कर दूर पड़े हैं कोने में

रोते से बिलखते से

सारे एहसास पड़े है फ़र्श पे मर कर

भार पोंछ कर समेट लूँ फिर भी चखते तो मिटेंगे

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Sootradhar