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अधिभूत
मदन के शर केवल पाँच हैं
बिंध गए सब प्राण, बचा नहीं
हृदय एक कहीं, अधिभूत की
नियति है, यति है, गति है, यही ।
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अधिभूत
मदन के शर केवल पाँच हैं
बिंध गए सब प्राण, बचा नहीं
हृदय एक कहीं, अधिभूत की
नियति है, यति है, गति है, यही ।