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रात आई

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रात आई
और अदृश्य में डूब गए
मीलों-मील फैले हुए
मार्च के सुनहले और सुर्ख़

एक नक्षत्र अपनी धुरी पर घूमता है
उन्हें दृश्य में लाने

धनतहिया कोई दो बीघे का यूँ ही परती में डाल दिया गया है

शून्य के लम्बे-लम्बे कश खींच रही है पृथ्वी

बस धनकुट्टे कुछ मखमली अब रेंगते रहेंगे यहाँ-वहाँ
गहरी सोच में डूबे हुए

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Sootradhar