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इच्छा होती है जब

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मालूम नहीं
इच्छा होती है जब
कि आए वह

क्या वह रूठ गई होती है
खेत-हार में सूख रहे
पूसों के बीच

दिन-दहाड़े
छब्बीस मार्च के दिन

जब कोई शक नहीं कि दहक रहे हैं तीन-तीन पेड़ों के फूल

हलके स्पर्श में चित्र-सरीखी बैठी हुई बकरियाँ
हलके बुखार में तप रही हैं

स्मृति
जब सिर्फ़ और सिर्फ़ एक आगोश है
दिशाओं में लरज़ती हुई

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Sootradhar