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अपने फूलों की दहक से

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अपने फूलों की दहक से
वह भी तो तुम्हारी उँगलियों को छूने की प्रतीक्षा करती है

कोई एकतरफ़ा प्रेम है यह
कि नैराश्य में मिटी जा रही है तुम्हारी आँखें!

नहीं है —
कि त्वचा तुम्हारी महक को बरज दे मार्च के माह में

नहीं यह भी नहीं
यह भी सब झूठ ही गुनते हो तुम गूदा-गादी की गर्ज़ से

तुम प्रेम करते हो उससे
कि जीवन में यही एक प्रेम किया है तुमने
कि इसी प्रेम की ख़ातिर
तुमने पृथ्वी के असह्य सौन्दर्य से क्षमा माँगी है कई बार

उन दुखों से और प्यास के पहाड़ों से भी क्षमा माँगी है
जो तुम्हे ध्वस्त किए भी तुम्हारी पँक्तियों में नहीं आते

माँगी है क्षमा पाखियों और मनुष्य के शिशुओं से
कई नर-मादा सर्पों से जिनकी सभ्यताएँ छीन ली गई हैं

फिर भी प्यास लगी आती है तुम्हारे शब्दों की देह को
जब शब्दों और अर्थों के बीच
तुम्हारे हृदय की धड़कन
और मेज़ पर बेवजह धरे पन्नों के बीच
एक अलंघ्य दूरी है

क्षमा माँगो कि क्षमा भी एक व्यर्थ का कर्म है, मित्र
जो बचा ले जाता है तुम्हें एक मुक्ताकाश में

वह भी तो तुम्हारी उँगलियों को छूने के प्रतीक्षा करती है
अपने फूलों की दहक से —

प्रतीक्षा
समय की बनी हुई नहीं है

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Sootradhar