ज़ख़्मों ने मुझ में दरवाज़े खोले हैं's image
0146

ज़ख़्मों ने मुझ में दरवाज़े खोले हैं

ShareBookmarks

ज़ख़्मों ने मुझ में दरवाज़े खोले हैं
मैं ने वक़्त से पहले टाँके खोले हैं

बाहर आने की भी सकत नहीं हम में
तू ने किस मौसम में पिंजरे खोले हैं

बरसों से आवाज़ें जमती जाती थीं
ख़ामोशी ने कान के पर्दे खोले हैं

कौन हमारी प्यास पे डाका डाल गया
किस ने मश्कीज़ों के तस्मे खोले हैं

वर्ना धूप का पर्बत किस से कटता था
उस ने छतरी खोल के रस्ते खोले हैं

ये मेरा पहला रमज़ान था उस के बग़ैर
मत पूछो किस मुँह से रोज़े खोले हैं

यूँ तो मुझ को कितने ख़त मौसूल हुए
इक दो ऐसे थे जो दिल से खोले हैं

मन्नत मानने वालों को मालूम नहीं
किस ने आ कर पेड़ से धागे खोले हैं

दरिया बंद किया है कूज़े में 'तहज़ीब'
इक चाबी से सारे ताले खोले हैं

Read More! Learn More!

Sootradhar