ख़ुद पे जब दश्त की वहशत को मुसल्लत करूँगा's image
0203

ख़ुद पे जब दश्त की वहशत को मुसल्लत करूँगा

ShareBookmarks

ख़ुद पे जब दश्त की वहशत को मुसल्लत करूँगा
इस क़दर ख़ाक उड़ाऊँगा क़यामत करूँगा

हिज्र की रात मिरी जान को आई हुई है
बच गया तो मैं मोहब्बत की मज़म्मत करूँगा

जिस के साए में तुझे पहले पहल देखा था
मैं इसी पेड़ के नीचे तिरी बै'अत करूँगा

अब तिरे राज़ सँभाले नहीं जाते मुझ से
मैं किसी रोज़ अमानत में ख़यानत करूँगा

तेरी यादों ने अगर हाथ बटाया मेरा
अपने टूटे हुए ख़्वाबों की मरम्मत करूँगा

लैलतुल-क़द्र गुज़ारूँगा किसी जंगल में
नूर बरसेगा दरख़्तों की इमामत करूँगा

Read More! Learn More!

Sootradhar