ज़िंदगी - नज़्म's image
081

ज़िंदगी - नज़्म

ShareBookmarks

हम कई बार टूट कर बिखरे

लड़खड़ाए गिरे उठे सँभले

एक इक साँस हम पे भारी है

पर सफ़र आज भी ये जारी है

कौन है हम-सफ़र यहाँ अपना

कौन है मो'तबर यहाँ अपना

ज़िंदगी के ये मरहले हैं अजीब

पेश आते हैं हादसे भी अजीब

कितनी टीसें दबी हैं सीने में

कितनी आहें घुटी हैं सीने में

कितना ये इम्तिहान लेती है

कितनी मुश्किल से जीने देती है

कोई आहट सी दिल में रहती है

छटपटाहट सी दिल में रहती है

ओढ़ रक्खी हैं खोखली ख़ुशियाँ

कुछ हक़ीक़त नहीं है सारा गुमाँ

छूने देती नहीं है साए को

संग चलती है बस दिखावे को

किस क़दर हम को आज़माएगी

और कितना हमें सताएगी

Read More! Learn More!

Sootradhar