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एक नन्हा-सा उजाला
आज यह बीहड़ अँधेरी रात
पथ खामोश
रुक गया रथ कल्पनाओं का
विकट पगडंडियों पर
प्राण पर परतें व्यथाओं की
हज़ारों जम गई हैं,
और खुशियाँ छोड़ कर यह देश
जाने कौन दुनिया रम गई है!
यह अंधेरा भी नहीं अपना
नया-सा, अजनबी-सा लग रहा है
किन्तु, ऐसे में
बहुत नजदीक इस दिल के
एक नन्हा-सा उजाला जग रहा है!
जो निरंतर राह को मेरी
हठीली मंज़िलों तक खींचता है
यह तभी बढ़कर जगाता है
कि जब विश्वास आँखें मींचता है।
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