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चढ़ गया दिल पर इशारों का नशा

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चढ़ गया दिल पर इशारों का नशा
उनके कहने से गुनहगार हुए बैठे हैं,
उनकी ख़ातिर ही सज़ावार हुए बैठे हैं ।
एक कारण है महज़ अपनी मुस्कराहट का,
उनकी नज़रों में गिरफ़्तार हुए बैठे हैं ।

उनकी हर शिकायत का ज़हर पी लूँगा,
उनकी हर एक शरारत का ज़हर पी लूँगा ।
बाद मरने के मेरे उनको मुहब्बत तो रहे,
इसलिए झूम कर नफ़रत का ज़हर पी लूँगा ।

रात को है चाँदतारों का नशा,
फूल को मधुमय बहारों का नशा ।
आँख क्या उनसे मिली है प्यार से,
चढ़ गया दिल पर इशारों का नशा ।

रूप की रेशमी बाँहों का गिला क्या करना,
उनकी रूठी-सी निगाहों का गिला क्या करना ।
ख़ुद ही लाख प्रयत्नों पे भी न सुधरे हमीं,
आज फिर उनके गुनाहों का गिला क्या करना !

 

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Sootradhar