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यार रूठा है हम सें मनता नहिं

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यार रूठा है हम सें मनता नहिं

दिल की गर्मी सीं कुछ ओ पहनता नहिं

तुझ को गहना पहना के मैं देखूँ

हैफ़ है ये बनाव बनता नहिं

जिन नें उस नौ-जवान को बरता

वो किसी और को बरतता नहिं

कोफ़्त चेहरे पे शब की ज़ाहिर है

क्यूँ-के कहिए कि कुछ वचंता नहिं

शौक़ नहिं मुझ कूँ कुछ मशीख़त का

जाल मकड़ी की तरह तनता नहिं

तेरे तन का ख़मीर और ही है

आब ओ गिल इस सफ़ा सीं सनता नहिं

जियो दुनिया भी काम है लेकिन

'आबरू' बिन कोई करंता नहिं

 

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Sootradhar