क्यूँ मलामत इस क़दर करते हो बे-हासिल है ये's image
0104

क्यूँ मलामत इस क़दर करते हो बे-हासिल है ये

ShareBookmarks

क्यूँ मलामत इस क़दर करते हो बे-हासिल है ये

लग चुका अब छूटना मुश्किल है उस का दिल है ये

बे-क़रारी सीं न कर ज़ालिम हमारे दिल कूँ मनअ

क्यूँ न तड़पे ख़ाक ओ ख़ूँ में इस क़दर बिस्मिल है ये

इश्क़ कूँ मजनूँ के अफ़्लातूँ समझ सकता नहीं

गो कि समझावे पे समझेगा नहीं आक़िल है ये

कौन समझावे मिरे दिल कूँ कोई मुंसिफ़ नहीं

ग़ैर-ए-हक़ को चाहता है क्यूँ इता बातिल है ये

कौन है इंसाँ का कोई दोस्त ऐसा जो कहे

मौत उस की फ़िक्र में लागी है और ग़ाफ़िल है ये

आशिक़ी के फ़न में है दिल सीं झगड़ना बे-हिसाब

कुछ नहीं बाक़ी रखा इस इल्म में फ़ाज़िल है ये

हम तो कहते थे कि फिर पाने के नहिं जाने न दो

अब गए पर 'आबरू' फिर पाइए मुश्किल है ये

Read More! Learn More!

Sootradhar