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जलते थे तुम कूँ देख के ग़ैर अंजुमन में हम

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जलते थे तुम कूँ देख के ग़ैर अंजुमन में हम

पहुँचे थे रात शम्अ के हो कर बरन में हम

तुझ बिन जगह शराब की पीते थे दम-ब-दम

प्याले सीं गुल के ख़ून जिगर का चमन में हम

लाते नहीं ज़बान पे आशिक़ दिलों का भेद

करते हैं अपनी जान की बातें नयन में हम

मरते हैं जान अब तो नज़र भर के देख लो

जीते नहीं रहेंगे सजन इस यथन में हम

आती है उस की बू सी मुझे यासमन में आज

देखी थी जो अदा कि सजन के बदन में हम

जो कुइ कि हैगा आप कूँ रखता है आप अज़ीज़

यूसुफ़ हैं अपने दिल के मियाँ पैरहन में हम

क्यूँ कर न होवे क्लिक हमारा गुहर-फ़िशाँ

करते हैं 'आबरू' ये तख़ल्लुस सुख़न में हम

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Sootradhar