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बर-सर-ए-लुत्फ़ आज चश्म-ए-दिल-रुबा थी मैं न था

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बर-सर-ए-लुत्फ़ आज चश्म-ए-दिल-रुबा थी मैं था

ढूँढती मुझ को निगाह-ए-आश्ना थी मैं था

यार को मद्द-ए-नज़र मश्क-ए-जफ़ा थी मैं था

वाए क़िस्मत कल वहाँ मेरी क़ज़ा थी मैं था

मेरे होते बे-तकल्लुफ़ हाथा-पाई ग़ैर से

क़ाबिल इस रुत्बे के ज़ालिम क्या हिना थी मैं था

आह मेरी ना-रसा फ़रियाद मेरी बे-असर

नींद उड़ा दी जिस ने तेरी वो हवा थी मैं था

याद फ़रमाना था मुझ को भी दम-ए-गुल-गश्त-ए-बाग़

साथ चलने को जिलौ मैं क्या सबा थी मैं था

परी पा-बोस से महरूम क्यूँ रक्खा मुझे

ख़ूँ-गिरफ़्ता इस चमन में क्या हिना थी मैं था

वा-ए-क़िस्मत ढूँडती थी कल मुझे शमशीर-ए-यार

रहमत-ए-आम उस की सर-गर्म-ए-अता थी मैं था

जाम मीना बादा साक़ी चंग दफ़ बरबत रबाब

नहर गुलशन चाँदनी सब्ज़ा फ़ज़ा थी मैं था

अपने कूचे में किया होता मुझे जारूब-कश

साहब इस ख़िदमत के क़ाबिल क्या सबा थी मैं था

तोड़ कर अफ़्लाक जो पहुँची सर-ए-अर्श-ए-बरीं

क़ुद्सियो वो मेरी आह-ए-ना-रसा थी मैं था

उम्र-ए-रफ़्ता तू ही मुझ वामाँदा का सुन ले पयाम

क़ाफ़िले वालों से कह देना कि साथी मैं था

सुब्ह-ए-वस्ल आज़ुर्दगी मुझ से ही किस तक़्सीर पर

वज्ह-ए-नाराज़ी तो मेरी इल्तिजा थी मैं था

जब गिला आशोब-पर्दाज़ों का उस बुत से किया

बोल उठा शोख़ी से चश्म-ए-फ़ित्ना-ज़ा थी मैं था

जाम मीना बादा साक़ी था ये सब 'नाज़िम' वहाँ

पर मिरी क़िस्मत कि ख़ाली मेरी जा थी मैं था

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Sootradhar