आज पहली बार's image
0192

आज पहली बार

ShareBookmarks

आज पहली बार
थकी शीतल हवा ने
शीश मेरा उठा कर
चुपचाप अपनी गोद में रक्खा,
और जलते हुए मस्तक पर
काँपता सा हाथ रख कर कहा-

"सुनो, मैं भी पराजित हूँ
सुनो, मैं भी बहुत भटकी हूँ
सुनो, मेरा भी नहीं कोई
सुनो, मैं भी कहीं अटकी हूँ
पर न जाने क्यों
पराजय नें मुझे शीतल किया
और हर भटकाव ने गति दी;
नहीं कोई था
इसी से सब हो गए मेरे
मैं स्वयं को बाँटती ही फिरी
किसी ने मुझको नहीं यति दी"

लगा मुझको उठा कर कोई खडा कर गया
और मेरे दर्द को मुझसे बड़ा कर गया।
आज पहली बार।

Read More! Learn More!

Sootradhar