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कौन कहता है मोहब्बत की ज़बाँ होती है

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कौन कहता है मोहब्बत की ज़बाँ होती है

ये हक़ीक़त तो निगाहों से बयाँ होती है

वो न आए तो सताती है ख़लिश सी दिल को

वो जो आए तो ख़लिश और जवाँ होती है

रूह को शाद करे दिल को जो पुर-नूर करे

हर नज़ारे में ये तनवीर कहाँ होती है

ज़ब्त सैलाब-ए-मोहब्बत को कहाँ तक रोके

दिल में जो बात हो आँखों से अयाँ होती है

ज़िंदगी एक सुलगती सी चिता है 'साहिर'

शो'ला बनती है न ये बुझ के धुआँ होती है

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Sootradhar