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सरहदें - नज़्म

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कोई तो हो इस जहाँ में ऐसा

कि जिस के बस में हो सारी दुनिया

की सरहदों की सभी लकीरें

जहाँ के नक़्शे से एक पल में

किसी जतन से मिटा के रख दे

ये आहनी ख़ार-दार तारें

ज़मीन के साथ दिल के रिश्ते भी बाँटती हैं

कई दिलों में तवील अर्से से चुभ रही हैं

कोई तो उन को उखाड़ फेंके

कोई तो हो जो तमाम दुनिया

को एक ख़ित्ते की शक्ल दे दे

अगर कोई मो'जिज़ा दिखा दे

तो सारे इंसान जब भी चाहें

फिर अपने प्यारों से मिल सकेंगे

बग़ैर वीज़ा की बंदिशों के

सहूलतों से मसर्रतों से

फिर इस के बदले अगर वो मुझ से

मिरी मता-ए-हयात माँगे

तो एक पल को भी मैं सोचूँ

ख़ुशी ख़ुशी उस को दान कर दूँ

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Sootradhar