पार्श्व गिरि का नम्र, चीड़ों में's image
0533

पार्श्व गिरि का नम्र, चीड़ों में

ShareBookmarks

पार्श्व गिरि का नम्र, चीड़ों में
डगर चढ़ती उमंगों-सी।
बिछी पैरों में नदी ज्यों दर्द की रेखा।
विहग-शिशु मौन नीड़ों में।

मैं ने आँख भर देखा।
दिया मन को दिलासा-पुन: आऊँगा।
(भले ही बरस-दिन-अनगिन युगों के बाद!)
क्षितिज ने पलक-सी खोली,

तमक कर दामिनी बोली-
'अरे यायावर! रहेगा याद?'

 

Read More! Learn More!

Sootradhar