![घिर रही है साँझ's image](https://kavishala-ejf3d2fngme3ftfu.z03.azurefd.net/kavishalalabs/sootradhar_post/agye_sa_sdisdu_d_viudsvuidsvi_isdiu_s__idud_iduj_i.jpg)
घिर रही है साँझ
हो रहा है समय
घर कर ले उदासी
तौल अपने पंख, सारस दूर के
इस देश में तू है प्रवासी!
रात! तारे हों न हों
रव हीनता को सघनतर कर दे अंधेरा
तू अदीन! लिये हिय में
चित्र ज्योति प्रदेश का
करना जहाँ तुझको सवेरा!
थिर गयी जो लहर, वह सो जाय
तीर-तरु का बिम्ब भी अव्यक्त में खो जाय
मेघ मरु मारुत मरण -
अब आय जो सो आय!
कर नमन बीते दिवस को, धीर!
दे उसी को सौंप
यह अवसाद का लघु पल
निकल चल! सारस अकेले!
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