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हर रोज़ राह तकती हैं मेरे सिंघार की

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हर रोज़ राह तकती हैं मेरे सिंघार की

घर में खिली हुई हैं जो कलियाँ अनार की

कल उन के भी ख़याल को मैं ने झटक दिया

हद हो गई है मेरे भी सब्र-ओ-क़रार की

माज़ी पे गुफ़्तुगू से वो घबरा रहे थे आज

मैं ने भी आज बात वही बार बार की

अब प्यार की अदा पे भी झुँझला रहे हैं वो

कहते हैं मुझ को फ़िक्र है कुछ कारोबार की

अक्सर तो लोग पहली सदा पर ही बिक गए

बोली तो गो लगी थी बड़े ए'तिबार की

ज़िंदा रही तो नाम भी लूँगी प्यार का

सौगंद है मुझे मिरे पर्वरदिगार की

सब का ख़याल घर की सजाट की महफ़िलें

मैं ने भी अब ये आम रविश इख़्तियार की

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Sootradhar