मैथिली और हिन्दी के महाकवि आरसी प्रसाद सिंह (१९ अगस्त १९११ - नवम्बर १९९६) रूप, यौवन और प्रेम के कवि के रूप में विख्यात थे।
रचित कवितायेँ
•माटिक दीप (mETilIमैथिली काव्य संग्रह)
•पूजाक फूल (मैथिली काव्य संग्रह)
•सूर्यमुखी (मैथिली काव्य संग्रह) (साहित्य अकादमी पुरस्कार सन् १९४८ में)
•कागज की नाव (hiहिन्दी)
अनमोल वचन: (हिन्दी)
Kalapi (Hindi)
“चलना है, केवल चलना है| जीवन चलता ही रहता है| रुक जाना है, मर जाना ही, निर्झर यह झड़ कर कहता है|” आरसी प्रसाद सिंह
जीवन का झरना आरसी प्रसाद सिंह के द्वारा रचित
यह जीवन क्या है? निर्झर है, मस्ती ही इसका पानी है। सुख-दुःख के दोनों तीरों से चल रहा राह मनमानी है। कब फूटा गिरि के अंतर से? किस अंचल से उतरा नीचे? किस घाटी से बह कर आया समतल में अपने को खींचे? निर्झर में गति है, जीवन है, वह आगे बढ़ता जाता है! धुन एक सिर्फ है चलने की, अपनी मस्ती में गाता है। बाधा के रोडों से लड़ता, वन के पेडो से टकराता, बढ़ता चट्टानों पर चढ़ता, चलता यौवन से मदमाता|
लहरें उठती हैं, गिरती हैं;
नाविक तट पर पछताता है।
तब यौवन बढ़ता है आगे,
निर्झर बढ़ता ही जाता है।
निर्झर कहता है, बढे चलो!
देखो मत पीछे मुड़ कर!
यौवन कहता है, बढे चलो!
सोचो मत होगा क्या चल कर?
चलना है, केवल चलना है!
जीवन चलता ही रहता है!
रुक जाना है मर जाना ही,
निर्झर यह झड़ कर कहता है!
जीवन और यौवन आरसी प्रसाद सिंह के द्वारा रचित
मै आया हूँ जीवन लेकर, मै यौवन लेकर आया हूँ!
आतुर कण कण से मिलने को फड़क रही हैं मेरी बाहें! निकल गया मैं जिधर, उधर ही टूटे शिखर, गयीं बन राहें! मुझमे जादू है, मिट्टी को छू दूँ, बन जाये सोना! मेरे हृदय-कमल से सुरभित है पृथ्वी का कोना-कोना!
दिन में चमका प्रखर सूर्य-सा, निशि में शशि बन मुस्काया हूँ! मैं आया हूँ जीवन लेकर, मैं यौवन लेकर आया हूँ!
सावन की घनघोर घटा-सा मैं बरसूँगा, मैं लरजूंगा! और वज्र-सा भीम व्योम के वक्षस्थल पर मैं गरजूंगा! चूमा करती है बिजली को बादल में हँस मेरी हस्ती रज-रज के जर्जर प्राणों में भर दूँगा मैं अपनी मस्ती!
जगती के सौंदर्य फूल पर! भौंरा बनकर मंडराया हूँ!