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कानन दै अँगुरी रहिहौं

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कानन दै अँगुरी रहिहौं, जबही मुरली धुनि मंद बजैहै।

मोहिनि तानन सों रसखान, अटा चढ़ि गोधुन गैहै पै गैहै॥

टेरि कहौं सिगरे ब्रजलोगनि, काल्हि कोई कितनो समझैहै।

माई री वा मुख की मुसकान, सम्हारि न जैहै, न जैहै, न जैहै॥

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