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बिस्मिल की अन्तिम रचना

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मिट गया जब मिटने वाला फिर सलाम आया तो क्या !

दिल की बर्वादी के बाद उनका पयाम आया तो क्या !


मिट गईं जब सब उम्मीदें मिट गए जब सब ख़याल ,

उस घड़ी गर नामावर लेकर पयाम आया तो क्या !


ऐ दिले-नादान मिट जा तू भी कू-ए-यार में ,

फिर मेरी नाकामियों के बाद काम आया तो क्या !


काश! अपनी जिंदगी में हम वो मंजर देखते ,

यूँ सरे-तुर्बत कोई महशर-खिराम आया तो क्या !


आख़िरी शब दीद के काबिल थी 'बिस्मिल' की तड़प ,

सुब्ह-दम कोई अगर बाला-ए-बाम आया तो क्या !

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Sootradhar