चारों ओर अंधेरा's image
0595

चारों ओर अंधेरा

ShareBookmarks

चारों ओर अंधेरा
नदी तट पर, मुर्दघट्टी, खेत-खलिहान, जंगल-झाड़ में
रो रहे हैं एक साथ
अन्धे मनुष्य और कुत्ते, बाघ, सियार!
मैं ही अकेला ढूंढ़ रहा हूँ
अनन्त में शब्द। शब्द में अर्थ। अर्थ में जीवन
जीवन में अकेला मैं ही
धूल-गर्द-कंकड़-पत्थर फांक रहा हूं।
क्या बौड़म है पूरा समाज?
गांव छोड़कर, खेत बेचकर, रखकर बन्धक गहने-जेवर
खान, फैक्टरी, कल-कारखाने की तरफ भाग रहा है।
गांव घर का, घर-डीह का नहीं रहा काम?
सत्य बोलिए आप हैं कहां?
पोथी-पतरा, ज्ञान-ध्यान, जप, तंत्रा-मंत्रा सब हारे-
दो आखर की पुष्पांजलि, यह प्रेम
कर सकेगा स्पर्श क्या आपका हृदय?
चारों ओर अंधेरा
गांव-नगर में, पथ-प्रान्तर में, वन में भटकने से लाभ?
जीवन समस्त, पृथ्वी समस्त है अन्ध-कूप
कूप में चमक रहा है विषधर मनियार!

Read More! Learn More!

Sootradhar