वो आग़ाज़-ए-मोहब्बत का ज़माना's image
0171

वो आग़ाज़-ए-मोहब्बत का ज़माना

ShareBookmarks

वो आग़ाज़-ए-मोहब्बत का ज़माना

ज़रा सी बात बनती थी फ़साना

क़फ़स को क्यूँ समझ लूँ आशियाना

अभी तो करवटें लेगा ज़माना

ये कह कर सब्र करते हैं सितम पर

हमारा भी कभी होगा ज़माना

क़फ़स से भी निकाला जा रहा हूँ

कहाँ ले जाए देखो आब-ओ-दाना

ग़ुरूर इतना न कर तीर-ए-सितम पर

कि अक्सर चूक जाता है निशाना

अगर बिजली का डर होगा तो उन को

बुलंदी पर है जिन का आशियाना

कहानी दर्द-ए-दिल की सुन के पूछा

'क़मर' सच कह ये किस का है फ़साना

Read More! Learn More!

Sootradhar