
स्वतंत्र है मुंह
कहीं भी कुछ भी बोल दे
गलत हुआ तो गुनाह आंखों का
उन्होंने ऐसा देखा ही क्यों
कान के सिर पर भी चढ़ा देता दो पाप
कि तुमने सुना ही क्यों
और नाक ने गलत क्यों सूंघा
दिमाग के मत्थे तो
आसानी से मढ़ा जा सकता है दोष
कि उसने सोचा नहीं होता वैसा
तो नहीं होता ऐसा
मुंह का इतना बेअंदाज होना ठीक नहीं
हे आंख, कान, नाक और दिमाग
इस मुंह को संभालकर रखा करों
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