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ज़िंदगी तेरी इनायत भी ग़ज़ब होती है

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ज़िंदगी तेरी इनायत भी ग़ज़ब होती है

इश्क़ हो जाए तो हालत ही अजब होती है

बस मोहब्बत भी है दाग़-ए-कफ़-ए-मूसा की तरह

मो'जिज़े क्या नहीं होते हैं ये जब होती है

मिरे दिल मुझे ये आस दिलाए रखना

इक नज़र लुत्फ़ की अब होती है अब होती है

ये ग़नीमत है कि है नग़्मा-ए-सोज़-ए-हस्ती

ज़िंदगी यूँ भी कहाँ रक़्स-ए-तरब होती है

रूह दर-अस्ल मोहब्बत के सिवा कुछ भी नहीं

दम में दम दिल में ये धड़कन का सबब होती है

तिश्नगी हद से गुज़र जाए बा'द-ए-तस्कीं

और मिल जाए तो फिर और तलब होती है

बे-ख़ुदी सा कोई आलम है ख़ुदी पर तारी

कैफ़ियत ऐसी ख़बर क्या मुझे कब होती है

दिल चुरा ले जो उसे कहती है जाँ भी दे दो

ये मोहब्बत भी तबीअ'त की अजब होती है

मेरे बस में तो फ़क़त मश्क़-ए-सुख़न है 'पिंहाँ'

ख़ुद ग़ज़ल चाहे कि हो जाए ये तब होती है

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Sootradhar