
उस को जब देख लूँ क़रार आए
दिल के सहरा में भी बहार आए
उन की क़ुर्बत में गुज़रा हर लम्हा
ज़ीस्त में मेरी बार बार आए
प्यारी सूरत जो देख ले तेरी
कैसे तुझ पर न उस को प्यार आए
वो हमें मुड़ के देखता भी नहीं
हम दिल-ओ-जान जिस पे वार आए
मैं ने तो गुल की आब्यारी की
मेरे हिस्से में सिर्फ़ ख़ार आए
वा'दा करते हो भूल जाते हो
कैसे फिर तुम पे ए'तिबार आए
धूप है और सफ़र है सहरा का
इक शजर कोई साया-दार आए
मैं पुकारूँ जब उस को ऐ 'अज़्का'
सर के बल चल के मेरा यार आए
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