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चाहत

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किसी और ने नहीं अपने धर्म को यह अधिकार

मैंने ही दिया है कि वह जब चाहे

सूखी लकड़ी की तरह झोंक दे मुझे आग में

अपनी तलवार से किसी पशु की

गरदन की तरह काट दे वह मेरा भी गला

और मेरा ख़ून बहा दे नालियों में

उस पिंजरे में जाकर मैं ख़ुद ही बैठा हूं

जिससे बाहर निकलकर उड़ने की सोचना

अपने आपसे घृणा करना है

अपनी क़ीमत पर अपने धर्म को

अपना मालिक बनाकर मैं बहुत ख़ुश हूं

मैं अपने मालिक को दुनिया के

सब मालिकों में सबसे ऊपर देखना चाहता हूं

मैं चाहता हूं कि मेरे मालिक के पास

मेरी तरह अपनी ज़िन्दगी से खेलने का अधिकार

सौंप देने वालों की संख्या भी सबसे ज़्यादा हो.

 

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Sootradhar