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तेरी ख़ुश्बू का पता करती है

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तेरी ख़ुश्बू का पता करती है
मुझ पे एहसान हवा करती है

शब की तन्हाई में अब तो अक्सर
गुफ़्तगू तुझ से रहा करती है

दिल को उस राह पे चलना ही नहीं
जो मुझे तुझ से जुदा करती है

ज़िन्दगी मेरी थी लेकिन अब तो
तेरे कहने में रहा करती है

उस ने देखा ही नहीं वर्ना ये आँख
दिल का एहवाल कहा करती है

बेनियाज़-ए-काफ़-ए-दरिया अन्गुश्त
रेत पर नाम लिखा करती है

शाम पड़ते ही किसी शख़्स की याद
कूचा-ए-जाँ में सदा करती है

मुझ से भी उस का है वैसा ही सुलूक
हाल जो तेरा अन करती है

दुख हुआ करता है कुछ और बयाँ
बात कुछ और हुआ करती है

अब्र बरसे तो इनायत उस की
शाख़ तो सिर्फ़ दुआ करती है

मसला जब भी उठा चिराग़ों का
फ़ैसला सिर्फ़ हवा करती है

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Sootradhar