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यह धन धर्म ही तें पायो

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यह धन धर्म ही तें पायो।
नीके राखि जसोदा मैया नारायण ब्रज आयो॥१॥
जा धन को मुनि जप तप खोजत वेदहुं पार न पायो।
सों धन धर्यो क्षीर सागर में ब्रह्मा जाय जगायो॥२॥
जा धन तें गोकुल सुख लहियत, सगरे काज संवारे।
सो धन वार वार उर अंतर, परमानंद विचारे॥३॥

 

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