![रंचक चाखन देरी's image](https://kavishala-ejf3d2fngme3ftfu.z03.azurefd.net/kavishalalabs/sootradhar_post/pramanand_das.jpg)
रंचक चाखन देरी दह्यो।
अद्भुत स्वाद श्रवन सुनि मोपे नाहित परत रह्यो॥१॥
ज्यों ज्यों कर अंबुज उर ढांकत त्यों त्यों मरम लह्यो।
नंदकुमार छबीलो ढोटा अचरा धाय गह्यो॥२॥
हरि हठ करत दास परमानंद यह मैं बहुत सह्यो।
इन बातन खायो चाहत हो सेंत न जात बह्यो॥३॥
Read More! Learn More!