
बरसती बारिश ये ख़बर लाई है
झोंपड़ी एक मेह में ढह आयी है
रह गयी मलबे में दबी सांस एक
उड़ती-उड़ती हवा भी कह आयी है
मेरे आंगन चांद रहता खेलता
मां की रसोई में रोटी बेलता
आसमां पर बैठ चिढ़ाता मुझे
मैं तुझे क्या जानूं मुन्ना-सा मेरा
फट गया अम्बर तो सीने लगी हूं
उधड़ा था रिश्ता जो जीने लगी हूं
चांदनी आंगन के बिछती जा रही
चाक अंधेरों के सीने लगी हूं
तड़प कर रह गयी हूं इस जाल में
टहनी उग कर फंस गयी जंजाल में
वृक्ष का कन्धा या मां की कोख थी
अटक कर भटकी हूं मायाजाल में
Read More! Learn More!