
मेरा बोझ! प्यारी
भूमि तेरा आकर्षण,
मेरा बोझ : चुंबकीय
तेरा हाथ से तू
मुझे अपनी ओर
खींचती-चाहे मेघ
सिरिंच से चू
पड़ती लघु बूँद हो,
चाहे किसी पंछी का स्वर्णिम
पंख हो, चाहे सूखे
पत्तें हो, चाहे बर्फ़ के
छींटे हो अपने
वक्षस्थल की ओर
स्वच्छंद खींच लेती
तेरी-कौन-सी माया
कौन-सा जादू! उसके पीछे
स्नेह, वात्सल्य, मोह,
विनोद, क्रौर्य या कारुण्य?
तेरे चुंबकीय आवरण से
निर्मुक्त हो कल मैं
एक चित्रपेटक* पर चढ़
चारों ओर घूमता गया
जैसे सेबर फूल से लगा
लघु बीज! — शून्याकाश में
नहीं किंचित् वजन!...
तब भी देखा दूर पर
स्नेह से, या क्रोध से
या निस्तंद्र शोक से या
असहायता से पीत हो
हरित हो, शोणित हो हा!
घनश्याम शबलाभ वह
कंपित तेरा मंजु मुख।
धीरे से उतरा मैं
तेरे मृदूष्मल वक्ष पर
गिर पड़कर गाया मैंने—
स्नेह कितना प्यारा बोझ!
चित्रपेटक : बहिरकाश यात्रा के लिए बनाए गए पेटक सदृश यान की ओर संकेत।