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ये मेरे पास जो चुप-चाप आए बैठे हैं

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ये मेरे पास जो चुप-चाप आए बैठे हैं

हज़ार फ़ित्ना-ए-महशर उठाए बैठे हैं

अदू से बज़्म-ए-अदू में लड़ा रहे हो निगाह

नहीं ख़याल कि अपने पराए बैठे हैं

कहीं न उन की नज़र से नज़र किसी की लड़े

वो इस लिहाज़ से आँखें झुकाए बैठे हैं

कोई हसीं नज़र आया ये बे-क़रार हुए

जनाब-ए-'नूह' को हम आज़माए बैठे हैं

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Sootradhar